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मा॒तुष्प॒दे प॑र॒मे शु॒क्र आ॒योर्वि॑प॒न्यवो॑ रास्पि॒रासो॑ अग्मन्। सु॒शेव्यं॒ नम॑सा रा॒तह॑व्याः॒ शिशुं॑ मृजन्त्या॒यवो॒ न वा॒से ॥१४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mātuṣ pade parame śukra āyor vipanyavo rāspirāso agman | suśevyaṁ namasā rātahavyāḥ śiśum mṛjanty āyavo na vāse ||

पद पाठ

मा॒तुः। प॒दे। प॒र॒मे। शु॒क्रे। आ॒योः। वि॒प॒न्यवः॑। रास्पि॒रासः॑। अ॒ग्म॒न्। सु॒ऽशेव्य॑म्। नम॑सा। रा॒तऽह॑व्याः। शिशु॑म्। मृ॒ज॒न्ति॒। आ॒यवः॑। न। वा॒से ॥१४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:43» मन्त्र:14 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:22» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:14


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (शुक्रे) शुद्ध (परमे) उत्तम (मातुः) माता के सदृश वर्त्तमान भूमि के (पदे) प्राप्त होने योग्य स्थान में (आयोः) जीवन के (विपन्यवः) विशेषतया स्तुति करने और और (रास्पिरासः) दोनों की प्रीति करनेवाले (रातहव्याः) दिये हुओं के देने योग्य (नमसा) सत्कार वा अन्न आदि से (वासे) वसने में (आयवः) मनुष्य (शिशुम्) शासन करने योग्य बालक को (मृजन्ति) शुद्ध करते हैं (न) जैसे वैसे (सुशेव्यम्) उत्तम सुखों में हुए व्यवहार को (अग्मन्) प्राप्त होते हैं, वे उत्तम प्रकार सुखों से युक्त होते हैं ॥१४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे माता शीघ्र उत्पन्न हुए बालक को उत्तम प्रकार शुद्ध करके उत्तम स्थान में रक्षा करती है, वैसे ही जो योगाभ्यास में चित्त को शुद्ध करते हैं, वे ऐश्वर्य्य के सहित सुख को प्राप्त होते हैं ॥१४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! ये शुक्रे परमे मातुष्पद आयोर्विपन्यवो रास्पिरासो रातहव्या नमसा वास आयवः शिशुं मृजन्ति न सुशेव्यमग्मन् ते सुशेव्या जायन्ते ॥१४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मातुः) जननीव वर्त्तमानाया भूमेः (पदे) प्रापणीये (परमे) उत्कृष्टे (शुक्रे) शुद्धे (आयोः) जीवनस्य (विपन्यवः) विशेषेण स्तावकाः (रास्पिरासः) ये रा दानानि स्पृणन्ति ते (अग्मन्) गच्छन्ति (सुशेव्यम्) सुष्ठु सुखेषु भवम् (नमसा) सत्कारेणान्नादिना वा (रातहव्याः) दत्तदातव्याः (शिशुम्) शासनीयं बालकम् (मृजन्ति) शोधयन्ति (आयवः) मनुष्याः (न) इव (वासे) ॥१४॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । यथा माता सद्योजातं बालकं संशोध्य सुवासे रक्षति तथैव ये योगाभ्यासे चित्तं शोधयन्ति ते सैश्वर्य्यं सुखं प्राप्नुवन्ति ॥१४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशी माता जन्मलेल्या बालकाला शुद्ध करून उत्तम स्थानी ठेवून त्याचे रक्षण करते. तसेच जे योगाभ्यासाने चित्त शुद्ध करतात ते ऐश्वर्य प्राप्त करून सुख मिळवितात. ॥ १४ ॥